
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे, ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (Eastern Peripheral Expressway) और एनएच-9 (NH-9) पर यात्रा करने वाले यात्रियों को अब अपनी जेब थोड़ी और ढीली करनी होगी। 1 अप्रैल 2025 से इन प्रमुख राजमार्गों पर टोल टैक्स में वृद्धि लागू होने जा रही है। यह बदलाव उन लाखों यात्रियों को प्रभावित करेगा जो रोजाना इन मार्गों से सफर करते हैं, खासकर दैनिक आवागमन करने वाले और व्यावसायिक वाहन चालकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू बन जाएगा।
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे पर नई टोल दरें
दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे (Delhi-Meerut Expressway), जो देश की राजधानी दिल्ली को उत्तर प्रदेश के मेरठ से जोड़ता है, इस पर यात्रियों को अब पहले की तुलना में अधिक टोल देना होगा। टोल दरों में यह वृद्धि हर प्रकार के वाहनों पर प्रभाव डालेगी, चाहे वह कार, जीप, हल्के व्यावसायिक वाहन हों या फिर भारी बस और ट्रक।
सराय काले खां से मेरठ तक कार या जीप से सफर करने वालों को अब ₹165 की जगह ₹170 देने होंगे, यानी ₹5 की सीधी बढ़ोतरी। वहीं हल्के व्यावसायिक वाहनों के लिए यह टोल ₹265 से बढ़ाकर ₹275 किया गया है। बस और ट्रक जैसे भारी वाहनों के लिए टोल ₹560 से ₹580 कर दिया गया है, जो ₹20 की बढ़त है।
इंदिरापुरम, डूंडाहेड़ा और डासना से मेरठ के बीच यात्रा करने वालों को भी टोल दरों में ₹5 से ₹10 तक की बढ़ोतरी झेलनी पड़ेगी। जैसे, इंदिरापुरम से मेरठ एक तरफ के लिए कार या जीप का टोल ₹110 से बढ़ाकर ₹115 और दोनों तरफ के लिए ₹170 से ₹175 किया गया है। इसी तरह डूंडाहेड़ा और डासना से मेरठ के लिए भी दरों में मामूली बढ़ोतरी हुई है, लेकिन यह बदलाव कुल मिलाकर यात्रियों के बजट पर असर डालेगा।
ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे और एनएच-9 पर भी बढ़ेगा टोल
दिल्ली के चारों ओर बने ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे (Eastern Peripheral Expressway) और एनएच-9 (National Highway 9) पर भी टोल टैक्स की दरें 1 अप्रैल 2025 से बढ़ने जा रही हैं। हालांकि इन मार्गों पर सटीक नई दरें फिलहाल सार्वजनिक नहीं की गई हैं। यात्रियों को सलाह दी गई है कि वे संबंधित टोल प्लाजा या भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर नई दरों की पुष्टि करें।
यह मार्ग विशेष रूप से दिल्ली से सटे शहरों जैसे गाजियाबाद, नोएडा, हापुड़, बागपत और मेरठ के बीच के ट्रैफिक को डायवर्ट करने के लिए बनाए गए थे, ताकि दिल्ली के भीतर के ट्रैफिक पर दबाव कम हो। लेकिन अब जब टोल दरों में वृद्धि हो रही है, तो इस पर चलने वाले ट्रांसपोर्टरों और कमर्शियल वाहन मालिकों को अतिरिक्त लागत का भार उठाना पड़ेगा।
दैनिक यात्रियों और व्यावसायिक ट्रांसपोर्ट पर असर
इस टोल टैक्स में वृद्धि का सबसे बड़ा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो हर दिन इन रूट्स पर सफर करते हैं। खासकर वे कर्मचारी जो दिल्ली से मेरठ या गाजियाबाद जैसे इलाकों में रहते हुए अप-डाउन करते हैं, उन्हें महीने के हिसाब से कई सौ रुपये अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। वहीं, व्यावसायिक परिवहन में लगे वाहन जैसे ट्रक, लोडिंग वैन, बसें आदि की परिचालन लागत में सीधा इजाफा होगा, जो अंततः उपभोक्ता उत्पादों की कीमतों में भी असर डाल सकता है।
डेली ट्रैवल करने वाले यात्रियों के लिए यह एक तरह का स्थायी खर्च बन जाएगा, जो पहले से ही पेट्रोल-डीजल के बढ़ते दामों और गाड़ियों के मेंटेनेंस खर्च से परेशान हैं। दूसरी तरफ, ट्रांसपोर्ट इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि इससे माल ढुलाई महंगी होगी, जो इनफ्लेशन को बढ़ा सकती है।
NHAI की तर्ज पर सालाना संशोधन की प्रक्रिया
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) हर साल टोल टैक्स की दरों में संशोधन करता है, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) और महंगाई दर को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। यह संशोधन आमतौर पर हर साल 1 अप्रैल से लागू होता है। इस बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई है, और उसी के तहत यह नई दरें घोषित की गई हैं।
हालांकि, सरकार की ओर से यह दावा किया जाता है कि ये दरें पहले से तय की गई पॉलिसी के अनुरूप हैं और इसका उद्देश्य हाईवे के मेंटेनेंस और ऑपरेशनल कॉस्ट को पूरा करना है। लेकिन आम नागरिकों और वाहन मालिकों के लिए यह एक और आर्थिक भार बनकर उभरता है।
डिजिटल भुगतान और फास्टैग का बढ़ता चलन
टोल टैक्स वृद्धि के साथ-साथ यह भी देखने को मिला है कि अब अधिकांश टोल प्लाजा पर डिजिटल भुगतान का चलन बढ़ गया है। फास्टैग (FASTag) के माध्यम से अब 90% से अधिक भुगतान किए जा रहे हैं, जिससे समय की बचत होती है और लंबी कतारों से निजात मिलती है। हालांकि, टोल टैक्स बढ़ने के कारण डिजिटल ट्रांजैक्शन की मात्रा तो बढ़ रही है, लेकिन लोगों को अब हर ट्रिप के लिए पहले से अधिक बैलेंस रखना पड़ेगा।
सरकार और आम जनता के बीच संतुलन की चुनौती
टोल टैक्स बढ़ोतरी पर सरकार की दलील है कि इससे सड़कों के रखरखाव और नई सड़कों के निर्माण में मदद मिलेगी। लेकिन आम लोगों का मानना है कि यह हर साल एक नया बोझ बनकर सामने आता है। ऐसे में ज़रूरत इस बात की है कि सरकार और जनता के बीच एक संतुलन कायम किया जाए, ताकि न तो इंफ्रास्ट्रक्चर की प्रगति रुके और न ही आम आदमी की जेब पर जरूरत से ज्यादा भार पड़े।